साथियों हम भारत के नागरिकों के बीच कुछ ज्वलंत विषयों को लेकर सबके बीच आए है।
3 दिसंबर 1984 की रात मध्य प्रदेश के भोपाल में एक गैस कांड हुआ था जिसे भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जानते है। जिसमें एक षडयंत्र के तहत मिक नामक गैस को लीक करके देखा गया था की कितने कम समय में कितने लोगों को मौत की नींद में सुलाया जा सकता है और महज कुछ समय की लीकेज से हजारों लोग सुबह का सुरज नहीं देख पाए। दूध पिलाती मां और बच्चे मृत पाए गये। और सुप्रीम कोर्ट ने एंडरसन और अमरीकी कुख्यात कम्पनी युनियन कारबाईड के दबाव में फैसला सुनाया और मृतकों की गिनती कर 720करोड़ रू कीमत तय कर दी और चुप हो जाने को कहा और इस पर से सारे क्रिमनल केस हटा दिए गये।उसी दिन अहसास हुआ की ये तो मौत के सौदागर है जो मौत के दाम तय करते है।एसी भयंकर स्थिति को देख कर की अब इस देश में इन विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आगे सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने हथियार डाल दिये और युनियन कारबाईड कम्पनी को माफी दे दी गयी थी तब अंतरराष्ट्रीय गणितज्ञ और सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन के नायक प्रो. बनवारी लाल शर्मा की पहल पर देश भर के समाजकर्मीयों, बुद्दजीवीयों और युवाओं ने मिलकर इस युनियन कारबाईड को देश से निकालने का अथक प्रयास किया और अंततः देश से बाहर खदेडने की सफलता भी हासिल की।
भोपाल गैस त्रासदी |
घटना वर्ष 1989 की है उस समय यह घटना मात्र छोटी सी और एक स्थान पर सीमित लगती थी पर उसकी विचारधारा इतनी व्यापक थी की पिछले 32 वर्षों में देशव्यापी और अंततः विश्वव्यापी आंदोलन के रूप में उभर कर सामने आई। उस साल 5 जून की भीषण गर्मी में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के गांधी भवन में संपूर्ण क्रांति दिवस मनाने के लिए बुद्धिजीवियों, समाजकर्मियों और युवाओं के गोष्ठी हुई उसमें देश के बिगडते हालातों की समीक्षा करते हुए यह सवाल गर्मजोशी से उठाया गया कि आखिर देश के हालात बदलने के लिए जेपी आंदोलन हुआ बहुत से लोग समाज परिवर्तन में लगे हुए हैं फिर भी देश की दशा व दिशा बद से बदतर क्यों होती जा रही है ?लम्बी चली बैठक और विचारों के आत्म मंथन में तरह-तरह के कारण निकल कर सामने आऐ उनमें से एक महत्वपूर्ण कारण निकाला गया कि देश की अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की नाजायज घुसपैठ और देश के धन का बाहर ले जाना।
इसी विचार ने लोक स्वराज अभियान (आजादी बचाओ आंदोलन) का सूत्रपात किया । जो की 18 महीने बाद सेवाग्राम आश्रम में जनवरी 1991 में आयोजित पहले राष्ट्रीय सम्मेलन नाम बदल कर आजादी बचाओं आंदोलन तय हुआ पर कार्यकर्ताओं की एक जुझारू व कर्मठ टीम ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सुची बनाने हेतु खोज में 5 जून 1989 से जुट गई थी ।
यहां एक बात का उल्लेख करना बहुत जरूरी है आजादी बचाओ आंदोलन के कार्यकलापों के बाद में पता चला कि वो बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कुकृत्यों के बारे में दुनिया में कुछ संगठन अध्ययन लेखन कर रहे थे और उनके द्वारा प्रकाशित जनरल मल्टीनेशनल मॉनिटर और मलेशिया में प्रोफेसर मोहम्मद इदरीश और डॉक्टर मार्टिन खोर कोर पोंग का समूह थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क और उसके द्वारा प्रकाशित थर्ड वर्ल्ड जिससे और टीडब्ल्यूएम फीचर विशेष रूप से उल्लेखनीय है। 1993 में डेविड कॉटन की अद्भुत पुस्तक when corporation rool the world प्रकाशित हो गई जिसने बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद कॉर्पोरेट कॉलोनीज़्म का अत्यंत गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया जिसका हिंदी अनुवाद प्रो. बनवारी लाल शर्मा जी ने किया जिसका शीर्षक "जब दुनिया में निगमों का राज चले" और कॉरपोरेट के खिलाफ सीधी लड़ाई आजादी बचाओ आंदोलन ने शुरु कि आगे चलकर इन अभियानों का भरपूर लाभ न केवल आंदोलन को मिला ।
बल्की आंदोलन ने साहित्य,पोस्टर, पत्रिका, व्याख्यान, कैसेट द्वारा सम्पूर्ण राष्ट्र को एहसास कराया ।बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा जारी शोषण लूट और अपसंस्कृतियों के प्रसारण से लोगों को परिचित कराया और उन्हें विदेशी उत्पादों के बहिष्कार का कार्यक्रम दिया। आजादी बचाओ आंदोलन देश का पहला आंदोलन था जिसने नए गैट डंकल प्रस्ताव के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी ।
23 मार्च 1992 आंदोलन ने दिल्ली के बोर्ड पर भूमंडलीकरण उदारीकरण की नीतियों के खिलाफ विशाल रैली का आयोजन किया 3 मार्च 1994 को अन्य जमीनी संगठनों के साथ मिलकर डंकल समझौते के विरुद्ध दिल्ली के लाल किले पर एक और विशाल रैली की ।
14 दिसंबर 1993 को आंदोलन ने दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में बड़ी सभा की जिसमें राज्यसभा के विरोधी दलों के सांसदों और समाज कर्मियों ने ऐलान किया कि राज्य सभा में सभी पेटेंट कानून का संशोधन पारित होने नहीं देंगे यह बिल 4 साल तक रुका रहा सरकार ने इस बिल को पारित करा लिया है पर आंदोलन में अन्य संगठनों के साथ इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है।
आंदोलन की साढे तीन साल की कानूनी लड़ाई के बाद दिल्ली के पुलिस आयुक्त ने 7 जुलाई 1999 को पुलिस आदेश जारी किया कि दिल्ली में कोई अश्लील पोस्टर चिपकाने नहीं दिया जाएगा दूरदर्शन के खिलाफ आजादी बचाओ आंदोलन की याचिका पर 3 जुलाई 1996 को दिल्ली के चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट श्री प्रेम कुमार ने आदेश जारी किया कि दूरदर्शन पर एडल्ट फिल्में तथा अश्लील कार्यक्रम बंद किए जाए और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की जाए भारत सरकार ने आंदोलन के इस प्रयास को निष्फल कर दिया।
30 अप्रैल से 15 मई 1993 को आंदोलन में गांधीवादी और समाजवादी संगठनों के साथ नमक बनाने आई सन् 2005 को अमरिकी कम्पनी कारगिल के खिलाफ आंदोलन चलाया और कांडला (गुजरात) बंदरगाह से उसे खदेड़ा।
राजस्थान के अलवर जिले में 24 देशी-विदेशी शराब का लाइसेंस रद कराया
शंकरगढ़ इलाहाबाद में विदेशी कंपनी सेल के कारखाने को नहीं लगने दिया और व्यापक जन उभार को संघर्ष की तरफ उड़ते हुए आंदोलन में अक्टूबर 2003 को वाराणसी के सम्मेलन में निर्णय किया कि कंपनियों के खिलाफ सीधी लड़ाई का समय आ गया है और आंदोलन में अपना पहला लक्ष्य बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद की झंडाबदार लूटखोरअमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों पेप्सी कोला कोका कोला को बनाया 20 फरवरी 2005 को इन कंपनियों के बॉटलिंग प्लांट हो कि पूरे देश में छात्र-छात्राओं ने घेराबंदी की और कारखाने को बंद कराने का नोटिस दिया 21 से 25 नवंबर 2006 तक देश के कई स्थानों पर पेप्सी और कोकाकोला के प्लांटों को आंदोलनकारियों ने अब उनकी बोतलों से लदे ट्रकों की ना केवल नाकेबंदी की बल्कि ट्रकों को आने जाने से रोक दिया गया बलिया उत्तर प्रदेश जिले के सिहावल ग्राम सभा में स्थित कोका कोला प्लांट पर आंदोलन का दबाव बना जिससे प्लांट बंद हो गया उत्तर प्रदेश में हाथरस गाजियाबाद हरियाणा में पानीपत राजस्थान में काला डोरा और मध्य प्रदेश में मंडीदीप स्थित कोका कोला प्लांट को बंद कराने की मुहिम चल रही है सेवा और वित्तीय क्षेत्रों पर अपनी पैड बनाने के बाद अब देशी-विदेशी कारपोरेट घराने जमीन और खेती पर अपना आधिपत्य जमाने में जुट गए हैं शेष तथा अन्य औद्योगिक परियोजनाओं के तहत लाखों किसानों को विस्थापित किया जा रहा है और उनकी जमीन का अधिग्रहण हो रहा है 2 साल से आंदोलन में भू अधिग्रहण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया आंदोलन के साथ ही झारखंड में हजारीबाग जिले के 186 गांव को उजड़ने के खिलाफ बहादुरी से संघर्ष कर रहे हैं।
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