परमाणु ऊर्जा संयंत्र लोगों की मौत का सौदागर :- राजकुमार सिन्हा


      केंद्र सरकार परमाणु उर्जा अधिनियम1962 के तहत परमाणु उर्जा केन्द्रों का विकास और संचालन करती है।इस अधिनियम के तहत फिलहाल घरेलू निजी कम्पनियों की उर्जा क्षेत्र में भागीदारी होती है।परन्तु नीति आयोग की ओर से गठित सरकारी समिति ने परमाणु उर्जा क्षेत्र में विदेशी निवेश पर लगी पाबंदी हटाने कि सिफारिश की है।समिति ने परमाणु उर्जा के उत्पादन में विदेशी कम्पनियों को शामिल करने के लिए परमाणु उर्जा अधिनियम के साथ विदेशी निवेश अधिनियमों में बदलाव की सिफारिश किया गया है।इसका  संकेत 2022 में भारत - अमेरिका के रक्षा और विदेश मंत्रियों  के बीच वाशिंगटन में हुई द्विपक्षीय वार्ता के समय ही मिल गया था।जब दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार 150 अरब डॉलर तक ले जाने पर सहमति बनी जो उस समय 113 अरब डॉलर का था।इस बैठक में परमाणु,क्लाइमेट एवं क्लीन एनर्जी,  अंतरिक्ष अभियान और साईबर सुरक्षा के क्षेत्रों में 30 अरब डॉलर (लगभग 2.28 लाख करोङ रुपए) के निवेश को लेकर बातचीत हुई थी।जिसमें अमेरिकी कम्पनी भारत में 60 हजार करोङ रुपए की लागत से छह परमाणु रिएक्टर लगाने और भारत के घरेलू उपयोग और निर्यात के लिए लघु माॅडयूलर परमाणु रिएक्टर टेक्नलोजी  के विकास पर करीब 10 हजार करोङ रुपए निवेश की इच्छा जाहिर किया था।इसको लेकर उस समय न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया और वाशिंगटन इलेक्ट्रिक कंपनी के बीच बातचीत अंतिम चरण में था।कुछ दिन पहले परमाणु उर्जा विभाग ने बताया है कि वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक, जीई हिताची, इलेक्ट्रिक डी फ्रांस (ईडीएफ) समेत कई विदेशी कंपनियां देश की परमाणु उर्जा प्रोजेक्ट में भाग लेने में दिलचस्पी दिखा रही हैं।बहुराष्ट्रीय कंपनियां प्रौद्योगिक, आपूर्ति या ठेकेदार के रूप में और सेवा प्रदाता के रूप में अलग-अलग क्षेत्रों में निवेश करने ईच्छुक हैं।



              जनवरी 2020 में परमाणु उर्जा विभाग (डीएई) ने इस सबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय से चर्चा की थी।चर्चा के बाद केन्द्रीय कानून मंत्रालय से कानूनी राय मांगी गई थी कि क्या एफडीआई नीती को संशोधित कर परमाणु विद्युत क्षेत्र को निवेश के लिए खोला जा सकता है? परमाणु उर्जा विभाग का मत था कि परमाणु उर्जा अधिनियम किसी भी रूप में परमाणु विधुत परियोजनाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी को नहीं रोकता है।भारत सरकार ने अगस्त 2022 में विदेशी निवेश नियम और विनिमयन में संशोधन के लिए अधिसूचित किया था।

            गौर तलब है कि भारत और अमेरीका कै बीच असैन्य परमाणु सहयोग के लिए 2008 के समझौते के तहत को परमाणु प्रौद्योगिकी और सामग्रियों का आयात शुरू करने की अनुमति दी गई और निजी कम्पनियों को भारतीय परमाणु बाजार में प्रवेश करने का रास्ता खोला गया।यह समझौता अमेरिका के परमाणु उर्जा अधिनियम 1954 की धारा 123 के तहत किया गया था।जिसे 123 समझौता कहा गया।इस समझौते को लेकर देश के विषय विशेषज्ञों ने गंभीर सवाल उठाये थे।

    सवाल उठता है कि परमाणु क्षेत्र में निवेश करने वाली कम्पनी भारत क्यों आना चाहती है? दुनिया के 192 देश में से मात्र 30 देश परमाणु बिजली संयंत्र चला रहे हैं। इटली ने  चेर्नोबिल की दुर्घटना के बाद ही अपना परमाणु बिजली कार्यक्रम बंद कर दिया था।कजाकिस्तान ने 1999 में और लिथुआनिया ने 2009 में अपने एकमात्र रिएक्टर को बंद कर दिया था।परमाणु उर्जा संयत्रों के इतिहास की तीन भीषण दुर्घटनाओं थ्री माइल आइस लैंड (अमेरिका), चेर्नोबिल (युक्रेन) और फुकुशिमा (जापान) ने बार - बार हमें यह चेताया है कि यह एक ऐसी तकनीक है जिस पर इंसानी नियंत्रण नहीं है।

फुकुशिमा में आसपास के 20 किलोमीटर दायरे में 3 करोङ टन रेडियोएक्टिव कचरा जमा है।इस कचरा को हटाने में जापान सरकार ने 94 हजार करोङ खर्च कर चुकी है।विकिरण को पुरी तरह साफ करने में 30 साल लगेगें।

परमाणु उर्जा स्वच्छ नहीं है।इसके विकिरण के खतरे सर्वविदित है।वहीं परमाणु संयंत्र से निकलने वाली रेडियोधर्मी कचर का निस्तारण करने की सुरक्षित विधी विज्ञान के पास भी नहीं है।ऐसी दशा में 2.4 लाख वर्ष तक रेडियोधर्मी कचङा जैवविविधता को नुकसान पहुंचाता रहेगा।

इसलिए अमेरिका और ज्यादातर पश्चिम यूरोप के देशों में पिछले 35 वर्षो में रिएक्टर नहीं लगाए गए हैं।जर्मनी ने तो अपने यहां अंतिम परमाणु उर्जा संयत्र को भी इस वर्ष बंद कर दिया है।   साठ और सत्तर के दशकों में परमाणु उर्जा का बहुत शोर था।जो अस्सी के दशक आते - आते स्पष्ट हो चुका था कि परमाणु बिजली काफी महंगी पङती है।विकसित पश्चिमी देशों में परमाणु बिजली परियोजनाएं अपने बजट से ज्यादा खर्चे और योजना से ज्यादा समय लगने से पुनर्विचार के लिए बाध्य हुए। दूसरा  परमाणु बिजली घरों के संभावित खतरे,ऐसे बिजली घरों को बंद किए जाने पर आने वाली भारी लागतों और परमाणु कचरे के भंडारण की समस्या ने भी सोचने के लिए मजबूर किया है।   दरसल परमाणु बिजली उधोग में जबरदस्त मंदी है।इसलिए अमेरीका,फ्रांस और रूस आदि की कम्पनिया भारत में इसके ठेके और आर्डर पाने के लिए बेचैन है।साल 2017 में ' विश्व परमाणु उधोग स्थिति रिपोर्ट' (वर्ल्ड न्यूक्लियर इंडस्ट्री स्टेटस रिपोर्ट) ने एक रिपोर्ट जारी की थी।इस रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले चार सालों में दुनियाभर में निर्माणाधीन परमाणु रिएक्टरों की संख्या में गिरावट देखी गई है।2013 तक वैश्विक स्तर पर 68 रिएक्टरों का निर्माण कार्य चल रहा था,वहीं 2017 में निर्माणाधीन रिएक्टरों की संख्या 53 हो चुकी है।

            परन्तु भारत में परमाणु परियोजना के विकास के लिए भारत के सबसे बङे बिजली उत्पादक नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन (एनटीपीसी) और न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) के बीच संयुक्त उद्यम अणुशक्ति विधुत निगम लिमिटेड बनाकर 1 मई 2023 को एक समझौता किया गया है।शुरुआत में संयुक्त उद्यम कंपनी दो प्रेशराइज्ड हेवी वाटर रिएक्टर (दाबित भारी जल रिएक्टर) परियोजनाओ का विकास करेगी - चुटका परमाणु परियोजना मंडला मध्यप्रदेश (2×700) और माही बांसवाडा राजस्थान परमाणु परियोजना(4×700) जिसे "फ्लीट मोड" की तरह बनाया जाएगा।रिपोर्ट के अनुसार चुटका परमाणु संयंत्र की अनुमानित लागत 25 हजार करोङ रुपए और माही परमाणु संयंत्र की 50 हजार करोङ रुपए होगी।

 भारत के सबसे बङे बिजली उत्पादक एनटीपीसी का लक्ष्य 2032 तक 2000 मेगावाट, 2035 तक 4200 मेगावाट और 2050 तक 20 हजार मेगावाट परमाणु उर्जा उत्पादन शुरू करना है।एनटीपीसी अभी तक ताप विद्युत और सौर उर्जा उत्पादन क्षेत्र में ही काम कर रहा था।परमाणु उर्जा क्षेत्र में यह उसका पहला प्रयास है।देश के कुल बिजली आपूर्ति में 1964 से गठित परमाणु उर्जा कार्यक्रम की हिस्सेदारी अबतक मात्र 6780 मेगावाट है जो 2 प्रतिशत है।जबकि पिछले एक दशक में नवीकरणीय उर्जा की हिस्सेदारी 1 लाख 19 हजार मेगावाट है।14 राज्यों में 39 हजार मेगावाट की क्षमता वाले 56 सोलर पार्क मंजूर किए गए हैं।17 पार्कों में 10 हजार मेगावाट से ज्यादा की परियोजनाए पहले ही शुरू हो चुकी है।इस संदर्भ में ग्लोबल एनर्जी माॅनिटर रिपोर्ट के अनुसार अक्षय उर्जा का ज्यादा से ज्यादा उपयोग न सिर्फ पर्यावरण, बल्कि आर्थिक रूप से लाभ का सौदा है।रिपोर्ट में कहा गया है कि  भारत अपनी योजना के अनुसार 2025 तक अपने सौर और पवन उर्जा क्षमता में 76 हजार मेगावाट का इजाफा करता है तो उसे हर साल 1950 करोङ डाॅलर का फायदा होगा।परमाणु संयत्र से एक मेगावाट बिजली उत्पादन की लागत लगभग 18 करोङ रुपए आएगी जबकि सौर उर्जा से लगभग 4 करोङ रुपए आता है।

केन्द्रीय उर्जा मंत्री आर.के.सिंह ने अपने एक आलेख में उल्लेख किया है कि कार्बन मुक्त दुनिया के लिए 110 सदस्यों और हस्ताक्षरकर्ता देशों के साथ अन्तरराष्ट्रीय सौर गठबंधन इस बदलाव के लिए प्रयासरत है।नई प्रौद्योगिकयां बाजार में आएंगी, जिनमें सौर - प्लस बैटरी का प्रतिस्पर्धी होना शामिल है।आपूर्ति श्रृखंला के साथ नई सौर फोटोवोल्टेइक (पीवी) विनिर्माण सुविधाएं 2030 तक अरबों रुपए के निवेश को आकर्षित कर सकती हैं।उन्होने जोर देकर कहा है कि सौर उर्जा के अलावा कोई अन्य उपयुक्त तकनीक नहीं है, जो घरों और समुदायों को उर्जा मामले में आत्मनिर्भर बना सकता है।परमाणु जैसी घातक और महंगी उर्जा परियोजना की जगह सौर एवं पवन उर्जा में निवेश करना ही सही निर्णय होगा। नीति निर्धारकों को इस दिशा में विचार करना वर्तमान समय की मांग है।








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