पर्यावरण असंतुलन के लिए विकसित राष्ट्र सहित मानवीय लालच जिम्मेदार :- श्री आनंद मालवीय

आजादी बचाओ आंदोलन के तत्वावधान में जूम बैठक दिनांक 6 जनवरी 2023 को संपन्न हुई।इस जूम बैठक के मुख्य वक्ता इलाहाबाद के आंदोलन के साथी तथा पर्यावरणविद् श्री आनंद मालवीय थे। इस बैठक का मुख्य विषय 'बदलता पर्यावरण, कारण और बदलने के प्रयास : जिम्मेदार कौन कार्पोरेट, आर्थिक महत्वाकांक्षा या दबी सहमी सरकारें' ? था।



 

श्री आनंद मालवीय ने इस मुद्दे पर विस्तार से अपनी बातें रखी।उन्होंने शुरुआत करते हुए कहा कि पर्यावरण का अर्थ है परि+आवरण पेड़ पौधे तथा जीव जंतु पर्यावरण में एक दूसरे को नियंत्रित करते हैं। पर्यावरण की चिंता प्राचीन समय से रही है। भारतीय साहित्य प्रकृति के साथ सायुज (सहोदर) बनाने पर जोर देता रहा है। प्राचीन काल में प्लेटो ने कृषि को भी पर्यावरण में हस्तक्षेप माना करते थे। लेकिन recycle होने तक इस व्यवस्था से कोई विशेष दिक्कत नहीं थी।



 

औद्योगिक क्रांति से यह संतुलन बिगड़ना उस वक्त शुरू हुआ,जब उत्पादन से तेजी से बढ़ा। आवश्यकता के बदले बाजार के लिए उत्पादन होने लगा। फ्रेंच अर्थशास्त्री का कथन काफी चर्चित हुआ, जब उसने कहा कि 'एक झूठा अहंकार आ गया कि विज्ञान ने प्रकृति को जीत लिया है।'Supply credits its own demand. बाजारवाद का यह सूत्र वाक्य है। 19वीं शताब्दी के एक सामाजिक चिंतक डीन इंज ने कहा कि पर्यावरण असंतुलन हमें कई रूपों में दिखता है।



             प्रारंभ में यह केवल वायुमंडलीय प्रदूषण के रूप में ही दिखता था। अब यह ध्वनि, जल, जैविक प्रजातियों के विलोपीकरण, कुछ वनस्पतियों का विलुप्तिकरण तथा ओजोन परत में छिद्र के रूप में दिखता है। यह जलवायु परिवर्तन के रूप में भी दिखता है। औद्योगिक उत्पादन जीवाश्म ईंधन का प्रयोग करता है।




         खनिजों का अंधाधुंध प्रयोग मनुष्य के लालच का बड़ा कारण है।विकास कार्यों के साथ-साथ इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए भी प्रकृति को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा रहा है।यहां पर उन्होंने महात्मा गांधी को उद्धृत करते हुए कहा कि धरती सभी की आवश्यकता है पूरी कर सकती हैं लेकिन किसी एक इंसान के लालच को पूरा नहीं कर सकती। 2012 के आंकड़ों के अनुसार विकास परियोजनाओं के कारण प्रतिवर्ष औसतन 30 लाख हेक्टेयर वन नष्ट किया जा रहे हैं।
ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन का ताज़ा उदाहरण को अगस्त 2020 के बांग्लादेश में आई बाढ़ से समझा जा सकता है।

 सरकारी आंकड़े और उपग्रह से प्राप्त जानकारी के अनुसार उस वक्त बांग्लादेश का 24 से 37% क्षेत्रफल जलमग्न हुआ था। उस क्षेत्र के 10 लाख घर और लगभग 47 लाख लोग प्रभावित हुए थे। बांग्लादेश का लगभग दो तिहाई इलाका समुद्र तल से 5 मीटर से कम ही ऊंचा है। अगर वहां के समुद्र के जलस्तर में 30 से 35 सेंटीमीटर की बढ़ोतरी हुई तो बांग्लादेश के तटीय इलाकों में रहने वाले करीब साढे तीन करोड़ लोग विस्थापित हो सकते हैं। यह बांग्लादेश की कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा है।
          पर्यावरण असंतुलन आधुनिक दौर में असमानता के सबसे विचलित करने वाले पहलुओं में से एक है। यह दुर्भाग्य है कि पृथ्वी को प्रदूषित करने में जो सबसे कम जिम्मेदार राष्ट्र है, वहीं इसका खामियाजा सबसे ज्यादा भुगत रहे हैं। पृथ्वी को गर्म करने में औसत बांग्लादेशी की तुलना में औसत अमेरिकी 33 गुना ज्यादा जिम्मेदार है। वैश्विक पर्यावरण के 40 फीसदी हिस्से की बर्बादी के लिए दुनिया की 10 फीसदी अमीर जिम्मेदार हैं। इसके उलट अति गरीब जनता की जिम्मेदारी केवल 5 फीसदी बनती है।
 उन्होंने अंत में कहा कि अगर दुनिया में पर्यावरण असंतुलन को समाप्त करना है तो विकसित और अमीर राष्ट्रों को इसकी पहल करनी होगी तथा इंसान को लोभ और लालच के बल पर अपनी बनाई हुई जीवन शैली को समाप्त करना होगा।
         मुख्य वक्ता के भाषण के बाद सवाल जवाब का भी एक छोटा सा सत्र हुआ तथा उत्सुक प्रतिभागियों द्वारा कुछ रोचक टिप्पणी की गई।
           आंदोलन के संयोजक डॉक्टर मिथिलेश डांगी जो कि उस वक्त कॉरपोरेटी लूट के प्रतिरोध को स्वर देने छत्तीसगढ़ में थे, ने कहा कि छत्तीसगढ़ के हसदा वन क्षेत्र, जिसे कांग्रेसी हुकूमत के समय अदानी समूह को दिया गया था लेकिन उस वक्त तक वहां के जंगल को काटने की इजाजत अदानी समूह को नहीं थी। विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के अगले दिन ही कई लाख हेक्टर पेड़ उस वन क्षेत्र से काट दिए गए। यह छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के द्वारा की जाने वाली कारपोरेटी लूट का एक नमूना है।
इस ज़ूम बैठक में अपनी बात कहने वाले उपरोक्त साथी के अलावे सीलम झा, हंसमुख भाई पटेल, प्रदीप जी, दिवाकर जी, हिमांशु युवा, मनीष सिन्हा सहित अन्य साथी मौजूद थे।

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