गांव और जंगल को विस्थापित करके बनाए जाने वाले विकास और उन्नति के नाम पर नाजायज़ व गैर जरूरी बांधों के दिखाए जाने वाले सब्ज़बागो से ग्रामीणों, आदिवासियों और आमजन को जिस तरीके से मुआवजा के लालच पर ठगा जा रहा है उसके मद्देनजर लगता है की सरकारों की आंखों पर लालच और लूट की जो पट्टी बंधी है उससे राष्ट्र के विकास की बात तो दूर की है विनाश की जो रेखा खींची जाएगी। उससे इस उजाड़ से आने वाली पीढ़ियों को उभरना नामुमकिन हो जाएगा।
विगत दिनों मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अपने डिंडोरी प्रवास के दौरान अपने वक्तव्य में कहा था कि जो अपर नर्मदा, राघवपुर और बसनिया बांध प्रभावितों की मांग मुआवजा बढाकर देने की है उन्हें मुआवजा बढाकर दिया जाएगा। मुख्यमंत्री के वक्तव्य पर प्रतिक्रिया देते बसनिया (ओढारी) बांध विरोधी समिति के अध्यक्ष बजारी लाल सर्वटे ने कहा कि प्रभावित परिवारों ने बांध निरस्त करने को लेकर ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित कर सबंधित जिला अधिकारी और जनप्रतिनिधियों को लिखित में दिया है।हजारों की संख्या में आदिवासी एवं अन्य परम्परागत वन निवासियों ने इस बांध के खिलाफ मंडला एवं डिंडोरी जिला मुख्यालय में रैली निकालकर सरकार को ज्ञापन दिया है। इस मामले में स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों द्वारा मुख्यमंत्री को गुमराह किया गया है।
बसनिया (ओढारी) बांध विरोधी समिति के अध्यक्ष बजारी लाल सर्वटे |
- बांध निरस्त करने की मांग के जगह मुआवजा बढाना स्वीकार नहीं
- विश्व नदी दिवस पर नर्मदा बचाने का संकल्प सम्मेलन
समिति के उपाध्यक्ष तितरा मरावी ने कहा कि मंडला और डिंडोरी जिला अनुसूचित क्षेत्र में अधिसूचित है। जहां पेसा कानून 1996, मध्य प्रदेश पेसा नियम 2022 और मध्यप्रदेश भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्विस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार नियम 2015 लागू है। कानूनी प्रावधानों के अनुसार सरकार ग्राम सभा की सहमति के बिना भूमि अधिग्रहण नहीं हो सकती है।परन्तु ग्राम सभा की असहमति के बाद भी जिला प्रशासन भू अर्जन की कार्यवाही को आगे बढा रहा है जो पेसा कानून और नियम के विरुद्ध है।
उपाध्यक्ष तितरा मरावी |
दूसरी ओर 3 मार्च 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा में पूछे गए एक सवाल के जबाब में लिखित दिया है कि बसनिया, राघवपुर, अपर बुढनेर,रोसरा, मछरेवा, अटारिया और शेर बांधों को निरस्त किया गया है। इसे फिर से प्रारम्भ करने के पीछे बांध बनाने वाली निजी कम्पनी और नौकरशाहों की गहरी साजिश है।बांध के कारण इस क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र, पर्यावरणीय, जैवविविधता और जलीय जीव पर प्रतिकूल असर के कारण अपरिवर्तनीय नुकसान होगा। मध्यप्रदेश के हिस्से वाली नर्मदा घाटी में 29 बङे बांध प्रस्तावित है।इसमें से कई बड़े बांध बनाए जा चुके हैं।
अतः उन सभी बांधों का नर्मदा नदी पर पङने वाले प्रभावों का एकत्रित मुल्यांकन पर्यावरणीय दृष्टि से आवश्यक है, जो अध्ययन अभी तक नहीं किया गया है।बसनिया बांध में 6343 हेक्टेयर जमीन डूब में आएगा जिसमें 2107 घना जंगल डूब में आने वाला है और 8780 हेक्टेयर जमीन में सिंचाई प्रस्तावित है।इसी बांध के उपर राघवपुर बांध से 4600 हेक्टेयर जमीन डूब में आएगी और 17587 हेक्टेयर जमीन में सिंचाई होने का दावा किया जा रहा है।जबकि हकीकत यह है कि सिंचाई का जितना लक्ष्य दर्शाया जाता है उसमें से मात्र 60 से 70 फिसदी में सिंचाई का पानी पहुँच पाता है।
विगत दिवस चिमका टोला में आयोजित संगठन की बैठक में सभी लोगों ने अनुरोध किया कि सरकार आदिवासी समाज की मांग को ध्यान में रखते हुए बांध को निरस्त करे। जिससे आस्था की नदी नर्मदा और उसके किनारे बसे आदिवासी समुदाय की जिंदगी एवं पर्यावरण सुरक्षित हो सके। संगठन ने निर्णय लिया है कि आगामी 22 सितंबर को विश्व नदी दिवस पर क्षेत्र में नर्मदा को बचाने संकल्प सम्मेलन आयोजित किया जाएगा।
इस बैठक में जमुना बाई तेकाम, बरतो बाई मरावी, राजेन्द्र कुलस्ते, सुबेसा बाबा विश्वकर्मा,महेन्द्र परस्ते, लहर दास सोनवानी,प्रेम लाल कर्मो, अर्जुन कर्मो, लामू सिंह मरावी, सुरेश मरावी आदि उपस्थित थे।
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संघर्ष के साथी सम्पर्क सूत्र:-
बजारी लाल सर्वटे, अध्यक्ष (9300509691)
तितरा मरावी, उपाध्यक्ष (9111411084)
बसनिया (ओढारी) बांध विरोधी संघर्ष समिति (मंडला- डिंडोरी)
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के द्वारा:-
हिमांशु युवा बलाश
(नई आजादी उद्घोष)
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