अदानी की अमीरी लोगों के विनाश के कब्र पर खड़ी है :- डॉ मिथिलेश कुमार दांगी

  • क्या इसे विकास कहेंगे?
  •  संदर्भ गोंदलपुरा कोयला खनन परियोजना
  • अदानी की अमीरी लोगों के विनाश के कब्र पर खड़ी है
  

                       झारखंड प्रदेश के हजारीबाग जिला अंतर्गत बड़कागांव प्रखंड का एक गांव है "गोंदलपुरा" जो ग्राम पंचायत भी है । इसी गांव के नाम पर कोयला मंत्रालय ने एक कॉल ब्लॉक बनाया है जो "गोंदुलपारा कोयला खदान परियोजना" के नाम से जाना जाता है। 2004 में यह कॉल ब्लॉक तेनुघाट विद्युत निगम लिमिटेड तथा दामोदर वैली कारपोरेशन को संयुक्त रूप से मिला था, लेकिन 2014 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने एक मुकदमे के फैसले में देश के 214 कोल ब्लॉक को रद्द कर दिया था जिसमें यह कोल ब्लॉक भी शामिल था । गौरतलब है कि इस कोल ब्लॉक का आवंटन बिजली संयंत्र के लिए कोयला आपूर्ति हेतु सुरक्षित रखा गया था तथा यह सरकारी कंपनी के लिए भी सुरक्षित था परंतु, दिनांक 8 मार्च 2021 को यह कॉल ब्लॉक मेसर्स अदानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड को एलॉटमेंट ऑर्डर नंबर एन ए - 104 / 10/ 2020 एन ए दिनांक 8/3/ 2021 के माध्यम से दी गई। इस कोल ब्लॉक के प्रकृति में बदलाव किया गया तथा इसे सरकारी कंपनी को दी जाने वाली कोल ब्लॉक से हटाकर निजी कंपनी के लिए खोल दी गई । इसके अलावा बिजली उत्पादन करने वाली कंपनी के लिए सुरक्षित कोल ब्लॉक के स्थान पर अदानी को व्यावसायिक उत्पादन के लिए दी गई है। ऐसा गौतम अडानी का नरेंद्र मोदी के ऊपर प्रभाव के कारण किया गया है । इस बदलाव से गौतम अडानी को यह छूट दी गई है कि वह गोंदलपूरा कोल ब्लॉक का कोयला जिसे चाहे बेच सकता है कोई बाध्यता नहीं है। यह पूर्ण रूपेण अदानी कंपनी पर निर्भर करता है कि वह यहां का कोयला किसे बेचेगा।

 अदानी की अमीरी लोगों के विनाश की कब्र पर खड़ी है: डा मिथलेश डांगी



 कॉल ब्लॉक की सामान्य जानकारी

 कंपनी का नाम अदानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड 

कंपनी का पंजीयन संख्या 
 L 51100 GJ 1993 PLC 019067 

खनन का प्रकार खुली खदान

 कोयला का भंडार 176.33 मिलियन टन 

प्रस्तावित राजस्व 20.75% 
वार्षिक राजस्व। 520.92 करोड़ प्रतिवर्ष 
खनन क्षमता। 4 मिलियन टन प्रतिवर्ष 
खनन की कुल अवधि 32 वर्ष

 विस्थापित परिवारों की संख्या
 1. पूर्ण रूपेण स्थापित परिवारों की संख्या 1950 
अगर प्रति परिवार औसतन चार व्यक्ति माना जाए तो कंपनी के आंकड़े के अनुसार कुल विस्थापित लोगों की संख्या 7800 होगी ।

2. दलित विस्थापित परिवारों की संख्या 542 
अर्थात कुल 2168 दलित परिवार इस परियोजना से बेघर हो जाएंगे।

 3. विस्थापित होने वाले अनुसूचित जनजाति परिवारों की संख्या 148

 इसका अर्थ क्या हुआ कि इस परियोजना से 592 अनुसूचित जनजाति के लोग विस्थापित हो जाएंगे ।

कुछ दिन पूर्व एक स्थानीय अखबार में एक स्थानीय पत्रकार के माध्यम से इस परियोजना के विकास की कहानी छपवाकर स्थानीय आंदोलन को कमजोर करने तथा हतोत्साहित करने की कोशिश की गई थी। उस पत्रकार ने कंपनी के पक्ष में यह लिखा कि इस परियोजना से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लगभग 10000 रोजगार के अवसर पैदा होंगे जबकि अडानी के द्वारा कोयला मंत्रालय को जो आवेदन दिया गया है उसमें इस परियोजना में स्थाई एवं नियमित रोजगार की संख्या 521 तथा 32 वर्षों में 480000 रोजगार दिवस उत्पन्न होंगे। 480000 कार्य दिवस को अगर हम 32 वर्ष में विभाजित करेंगे तो यह प्रतिदिन 41 ही आता है अर्थात 521 स्थाई तथा 41 दैनिक अस्थाई रोजगार उत्पन्न होगा। इस प्रकार इस परियोजना से कुल 562 लोगों को रोजगार मिलेगा बाकी 7238 लोग अपने भाग्य भरोसे अडानी के विकास को देखकर अपना विकास मानने पर मजबूर होंगे, और सरकार इस 562 लोगों के रोजगार और 7238 लोगों के बेरोजगारी का जश्न मनाएगी ।
अब सवाल यह है कि क्या 
7238 लोग जो आज किसी न किसी व्यवसाय या खेती से अपनी जीविका बहुत मजे से चलाते आ रहे हैं उन्हें शुन्य या हाशिए पर लाकर 562 लोगों को 32 वर्षों का रोजगार देना कैसा विकास होगा?
 आज जो अपने जमीन के कारण इज्जत की रोटी खा रहे हैं और मालिक की हैसियत से सिर उठाकर समाज में चल रहे हैं वे कल अपनी जमीन और जीविका खोने पर नौकर या खोमचे , रेहडी या ऑटो वाले हो जाएंगे । यह विकास की कौन सी परिभाषा है?

 प्रस्तावित खेत वन और उसके प्रभाव

इस परियोजना में कुल 513.18 हेक्टेयर यानी लगभग 1283 एकड़ जमीन खनन क्षेत्र में और 162 एकड़ जमीन पुनर्वास हेतु ले ली जाएगी अर्थात कुल 1445 एकड़ जमीन जो आज लगभग 8000 व्यक्तियों का जीविका का साधन बना हुआ है वह कल सिर्फ 562 लोगों के जीविका और ऐशो आराम के लिए सुरक्षित होगा वह भी सिर्फ 32 वर्षों के लिए। 

आइए , अब वन और गैर वन भूमि के रूप में इसे और समझे 

वन भूमि 
इस परियोजना में 219.65 हेक्टर वन भूमि खनन हेतु ली जाएगी जो लगभग 550 एकड़ के आसपास होता है 

 महुआ जैसे उद्योग पर खतरा

इस वन भूमि में कई ऐतिहासिक अवशेष हैं तथा इसमें सैंकड़ों प्रकार के वृक्ष तथा जड़ी बूटियां का भरमार है । पूरे इलाके में हजारों महुआ के पेड़ हैं जिसे यहां रहने वाले किसान और भूमिहीनों का वर्ष में दो-तीन महीना का जीवन यापन चलता है ।
1 किलो महुआ का विक्री मूल्य औसतन ₹50 प्रति किलो है । अगर एक पेड़ से न्यूनतम 20 किलोग्राम सुखा महुआ प्राप्त होता है तो एक महुआ के पेड़ से प्रतिवर्ष ₹1000 की आमदनी किसान की हुई। एक-एक किसान के पास इस प्रकार की औसतन 10 पेड़ हैं तो एक किसान एक वर्ष में ₹10000 का महुआ बेचकर अपनी आमदनी में थोड़ा इजाफा कर लेता है। एक महुआ का पेड़ अपनी जीवन में लगभग 30 वर्ष तक भरपूर फसल देता है तो एक पेड़ अपने जीवन में कम से कम ₹3 लाख का महुआ का फूल देता है। उसके फल एवं बीज का भी लोग संग्रह कर उसके तेल को भी उपयोग करते हैं । इसके अलावा इस पेड़ से जो ऑक्सीजन प्राप्त होता है वह अलग है। यह कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य जहरीली गैसें का अवशोषण कर जो हमें जीवन प्रदान करता है वह अमूल्य है।

 जड़ी बूटियां पर खतरा

 इसी प्रकार इस जंगल में केंदु, पियार, हर्रे , बहेरा, आंवला,इंद्र जौ, पैंसार, सखुआ, सेमल जैसे सैकड़ो बहुपयोगी पेड़ हैं जो इस परियोजना के कारण नष्ट हो जाएंगे। इस प्राकृतिक वन के स्थान पर 
अदानी ने वन विभाग में पेड़ों के बदले कैंपा फंड में पैसे जमा कर दिए हैं । क्या उन पैसों से आज जो वनवासी और प्रभावित गांवों के किसान इन वनोत्पादों से लाभ उठा रहे हैं उन्हें लाभ मिल पाएगा?

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