लेखक: डा मिथलेश डांगी
खंड दो
प्राण वायु पर खतरा
एक वैज्ञानिक अध्ययन यह बताता है कि एक व्यक्ति को जीवित रहने के लिए जो ऑक्सीजन की आवश्यकता है वह औसतन 7 से 8 पेड़ों से प्राप्त होता है । इस वन क्षेत्र में लगभग 30000 पौधे नष्ट किए जाएंगे तो इतने पेड़ों से जो ऑक्सीजन प्राप्त होता है वह 3750 लोगों के लिए पर्याप्त है अर्थात अगर इतने पेड़ नष्ट हो जाएंगे तो लगभग 3750 व्यक्तियों को सांस लेने के लिए ऑक्सीजन की कमी हो जाएगी ।क्या पेड़ों का मुआवजा 3750 व्यक्तियों को प्रतिदिन 32 वर्षों तक ऑक्सीजन दे पाएगा ?
सिंचाई और बालू समाप्त होने का खतरा
इस वन क्षेत्र से झारखंड की सबसे महत्वपूर्ण नदी दामोदर की प्रमुख सहायक नदी बदमाही नदी निकलती है जो अपनी पूरी लंबाई में गोंदलपूरा, बादम, डमबाड़ीह , राउत पारा, शून्य हरली , चुनातरी, गंगा दोहर, विश्रामपुर , नयाटांड, सोनपुरा, महुदी जैसे गांव के किसानों की जीवनदायनी है। यह नदी अपने दोनों किनारो पर हजारों एकड़ भूमि को सिंचित करती है। इसके अतिरिक्त हजारों युवकों को बालू में के रूप में यह जीवन यापन का साधन भी मुहैया कराती है। इस परियोजना से इस नदी का जीवन ही समाप्त हो जाएगा जिसका परिणाम इस नदी के किनारे बसे गांव पर भी पड़ेगा ।हजारों युवकों का रोजगार जो बालू से जुड़ा है इस परियोजना से समाप्त हो जाएगा । अगर एक दिन में इस नदी से 100 ट्रैक्टर बालू का खनन होता है तो 1 वर्ष के लगभग 200 दिनों में लगभग 20,000 ट्रैक्टर बालू का योगदान देता है जिसका मूल्य 6 करोड़ होता है। इस परियोजना से इस इलाके के बेरोजगार युवक जो इन ट्रैक्टरों में काम कर रहे हैं उन बेरोजगार युवकों को सालाना इस परियोजना के आने से 6 करोड रुपए की हानि होगी।
क्या यह परियोजना इन युवकों को इतना मुनाफा दे पाएगा ?यह परियोजना मात्र 562 लोगों को रोजगार लेकर आ रहा है। क्या यह परियोजना रोजगार लेकर आ रहा है या बेरोजगारी गंभीरता से सोचें।
अदानी की अमीरी लोगों के विनाश की कब्र पर खड़ी है: डा मिथलेश डांगी |
मानवेत्तर जीवन पर प्रभाव
इन वनों में बहुत सारे जीव जंतु आश्रय लिए हुए हैं जिसके उजड़ने से उनका जीवन सीधा प्रभावित होगा। क्या उनके लिए कोई आश्रय बनाया गया है?
वन विभाग यह मानता है कि वह जीव किसी और वन में पलायन कर जाएंगे तो क्या अन्य वन पहले से वन्य जीवों से खाली था या वहां पहले से वन्य जीव थे अगर वहां पहले से वन्य जीव हैं तो नए वन्यजीवों को उन पूर्व के वन्य जीवों से संघर्ष करना पड़ेगा जिसमें कई जीवो की जीवन लीला समाप्त हो जाएगी ।
क्या इस विकास में उन निरीह एवं बेकसूर वन्यजीवों का कोई स्थान है?
2. गैर वानिकी क्षेत्र
1. कृषि उपज
इस परियोजना के लिए 896 एकड़ बहु फसली खेती की जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है । इन में से लगभग 600 एकड़ भूमि ऐसी है जिसमें तीनों ऋतुओं की फसलें देखे जा सकते हैं। वैसे इन जमीनों में लगभग 22500 क्विंटल सिर्फ धान की उपज होती है जिसका बाजार मूल्य लगभग 5 करोड रुपए आता है। इन जमीनों पर खनन होने से इस राज्य के ऊपर 5 करोड रुपए मूल्य के धान का बोझ प्रतिवर्ष पड़ेगा यानी 32 वर्षों में यह बोझ 160 करोड रुपए का होगा । धान के अतिरिक्त यहां मक्का, गन्ना, विभिन्न प्रकार की सब्जियां, गेहूं, दलहन इत्यादि के उपज में भी यह क्षेत्र आत्मनिर्भर है। क्या इस परियोजना के सफल होने पर खाद्यान्न कि इस कमी को मुआवजा की राशि से पूरा किया जा सकेगा?
क्या विस्थापित लोग जो आज खाद्यान्न के मामले में लगभग आत्मनिर्भर हैं विस्थापन के बाद मिली मुआवजे की राशि से आज की तरह उन खाद्यान्नों का पूर्ति कर पाएंगे?
2. स्थाई अधिग्रहण
कोयला मंत्रालय के अनुसार इस कोल ब्लॉक में जितना कोयले का भंडार है वह 32 वर्षों में निकाल ली जाएगी अर्थात इस परियोजना की आयु मात्र 32 वर्षों की है जबकि यह जमीन है और यहां का इतिहास हजारों वर्ष का है।
मात्र एक व्यक्ति के अमीरी को और बढ़ाने के लिए हजारों वर्षों के जमीनों और इतिहास को दफन करने को विकास कहना तथा व्यावसायिक उत्पादन को लोकहित का नाम देना कितना उचित होगा?
3.अदानी द्वारा कोयले की लूट
जैसा की ऊपर वर्णित किया जा चुका है इस परियोजना के लिए 1445 एकड़ जमीन की आवश्यकता है तथा यहां 176.33 मिलियन टन कोयला का भंडार है अदानी कंपनी के लिए उपायुक्त हजारीबाग ने जो अधिसूचना जारी किया है उसमें जमीन का मुआवजा 25 लाख रुपए प्रति एकड़ रखा गया है।
अब इस पूरे परियोजना के आर्थिक पक्ष पर एक नजर दौड़ाएं
क ) जमीन का मुआवजा 361.25 करोड रुपए
ख)कोयला का भंडार 176.33 मिलियन टन
ग) 1 टन कोयला का वर्तमान बाजार मूल्य लगभग ₹4000 प्रति टन
घ) कुल कोयला का बाज़ार मूल्य ₹70,532 करोड रुपए
च)। खुली खदान में खनन खर्च लगभग 30%
इस प्रकार खनन एवं परिवहन में कुल खर्च 21,160 करोड रुपए
छ ) कंपनी का कुल खर्च 21521.25 करोड रुपए
ज) कंपनी का बचत 49 010.75 करोड रुपए
झ) सरकार को रॉयल्टी 32 वर्षों के लिए लगभग 17000 करोड रुपए
ट) अदानी कंपनी का शुद्ध बचत
32,010.75 करोड रुपए
यह परियोजना 32 वर्षों के लिए है अर्थात अदानी को इस परियोजना से प्रतिवर्ष लगभग 1000 करोड रुपए का शुद्ध मुनाफा होगा ।
अब आप गौर करें ऊपर के आंकड़ों एवं पूर्ण वर्णन से तय करें की
विकास किसका ?
पर्यावरण हानि क्या रुपयों से ठीक किया जा सकता है?
- क्या 8000 लोगों की तबाही वाले इस परियोजना को लोक प्रयोजन का परियोजना कहना चाहिए ?
- क्या अडानी की अमीरी को बढ़ाने के लिए 8000 परिवारों की तबाही और बर्बादी को देश की उन्नति मानी जा सकती है?
- क्या 8000 परिवारों की तबाही के आधार पर अदानी की अमीरी को जायज ठहराया जा सकता है ?
विचार कर देखिए
अगर आपको इन प्रश्नों का उत्तर सकारात्मक लगता है तो अपनी जमीन अदानी को दीजिए और अगर नकारात्मक लगता है तो जमीन बचाने हेतु संघर्ष करें और सरकार को संविधान की धारा 39b एवं 8 जुलाई 2013 को दिए गए माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले, समता जजमेंट तथा विलकिंग्सन'स रूल के अनुसार स्थानीय जनता को इस कोयले पर अधिकार के लिए मजबूर करें
विचार आपका क्योंकि जमीन आपकी
(लेखक आजादी बचाओ आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक है)
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