कवयित्री : रूपम झा
है समय मायूस कितना,
आदमी बदहाल है,
यही अमृत काल है।।
झूठा राजा हो गया है,
सच खड़ा असहाय है,
कौन अब देगा सहारा,
बिक रहा जब न्याय है।।
खो गए हैं प्रगति के पथ,
हर तरफ हड़ताल है।।
यही अमृत काल है।।
चुप खड़ा आकाश है,
है पड़ी उम्मीद घायल,
मर रहा विश्वास है।।
हर तरफ दाने बिछे हैं,
हर तरफ ही जाल है।।
यही अमृत काल है।।
हर तरफ रंगीन सपने,
रोज हमको ठग रहे,
राम का धर भेष रावण,
नींद से अब जग रहे।।
देश में धर्मांधता का,
हर तरफ भ्रमजाल है।।
यही अमृत काल है।।
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